उदयन शर्मा की स्मृति मे कंस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित सेमिनार का विषय था, ”लॉबिइंग, पैसे के बदले खबर और समकालीन पत्रकारिता”. ज्यादातर महानुभावों ने अपनी मजबूरियां गिनाते हुए पैसे के महत्व को जायज ठहराने की कोशिशें की. एक रामबहादुर राय ने कुछ हिम्मतखेज बाते कह कर उम्मीदें जगाई, प्रभाषजी की याद दलाई और साथ ही जवान खून के समझौतावादी रुख पर बूढ़ी हड्डियों की प्रत्यंच तानी. एक और खास, बात पूरी बहस के दौरान मीडिया में पैसे के जोर की तो सबने जमकर चर्चा की लेकिन सेमिनार के पहले हिस्से लॉबिइंग को सब एक सिरे से भूल गए. हाल के दिनों में जिस तरह से देश के दो बड़े स्वनामन्य पत्रकारो के नाम लॉबिइंग की दुनिया में उछले हैं उसके बाद उम्मीद थी कि इस पर भी कोई सार्थक बहस होगी. लेकिन मीडिया की ज्यादातर बहसों की तरह ही यहां भी कुछ चीजों को नकार कर, कुछ चीजों को जानबूछ कर दरकिनार कर सभा विसर्जित हो गई. लॉबिइंग में पत्रकारों का शामिल होना क्या किसी खतरे की निशानी नहीं है. जिस नेता के लिए आज पत्रकार लॉबिग कर रहा है कल उसके कुकृत्य पर वह या उसका संस्थान क्या कोई खबर भी छाप या दिखा सकेगा? सवाल तमाम है. उदयन स्मृत व्याख्यान की प्रक्रिया बेहद अलोकतांत्रिक रही. वहां मंच पर बैठे वक्ताओं को बोलने का मौका दिया गया, सबने अपनी बात कही और चाय-पानी का दौर शुरू हो गया. कार्यक्रम का नाम संवाद था लेकिन श्रोताओं से किसी तरह का संवाद स्थापित करने की कोशिश तक नहीं की गई. कोई सवाल जवाब नहीं हुआ. ये एकतरफा संवाद बड़ा मजेदार लगा…