रविवार को अरुण जेटली की प्रेस कांफ्रेंस की जानकारी मिलते ही दिमाग में एक साथ कई सवाल कौंध गए। पहली बात तो रविवार को विशेष परिस्थितियों में ही पार्टियां मीडिया को याद करती हैं अन्यथा 24 घंटे कैमरों की पीछा करती नज़र से बचने के लिए ये दिन नेताओं के लिए सबसे मुफीद रहता है। एक बात तो दिमाग में साफ हो गई अरुण जेटली उमा के फर्जी सीडी कांड पर अपना पक्ष रखेंगे और साथ ही संसद में कैश फॉर वोट कांड से जुड़े कुछ खुलासे भी कर सकते हैं। पर जिस तर्ज पर जेटली ने शुरुआत की और एक एक करके जिस तरह से उन्होंने अमर सिंह, संजीव सक्सेना, उनके आपसी संबंध, समाजवादी पार्टी, अहमद पटेल का कच्चा चिट्ठा खोलना शुरू किया उससे अपना ही अनुमान एकाएक गलत साबित होने लगा। जिस तरह के प्रमाणों के साथ अरुण जेटली प्रेस कान्फ्रेस में चौके-छक्के मार रहे थे उसमें उनका पारखी वकालती नज़रिया साथ साफ-साफ झलक रहा था। सुप्रीम कोर्ट का ये वकील अपने दामन पर एक दिन पूर्व अपनी पूर्व सहयोगिनी उमा भारती द्वारा उछाले गए कीचड़ पर एक भी शब्द नहीं बोला। लेकिन जिस तरह के दस्तावेजी सबूत उन्होंने पेश किए ऐसा अगर वो 22 जुलाई को सीएनएन-आईबीएन को समझा देते तो शायद आज राजदीप की जो थुक्का फजीहत हो रही है वो न होती। बहरहाल उमा पर वार न करने की वजह उन्होंने बाद में बताई कि उमा उनके हिसाब से टिप्पणी के लायक ही नहीं हैं वो तो खुद अमर सिंह के हाथों मोहरा बन गईं हैं।
गौरतलब है कि इस सीडी के जारी होने के बमुश्किल दो या तीन दिन पहले उमा, अमर सिंह से मिलने उनके घर भी गई थी। और पत्रकारों के पूछने पर उन्होंने जवाब दिया था कि महिला आरक्षण के संबंध में चर्चा करने के लिए आई थी। दो दिन बाद उमा द्वारा जारी सीडी का मजमून समझने के लिए इतना ही इशारा काफी है।
इतनी उठा पटक के बीच अमर सिंह का पक्ष जानना भी जरूरी था। पर उन्होंने अपने दरवाजे पर आए पत्रकारों को ये कह कर टाल दिया कि मैं कल जवाब दूंगा। यानी अमर सिंह को कही न कहीं अहसास हो गया था कि एक और उल्टा-सीधा बयान उनके लिए मुसीबत बन सकता है। पर राजनीति की कढाई इतनी जल्दी आग से नहीं उतरती। अगले दिन अमर सिंह अपने सरगना मुलायम सिंह के साथ दो और सिपहसालारों का जुगाड़ करके एक नई सीडी लेकर हाजिर हो गए। ये नए सिपहसालार थे लालू यादव और रामविलास पासवान जिन्होंने इसी सरकार में मंत्री रहते हुए एक समय आपसी लड़ाई को एक दूसरे के आंगन और बेडरूम तक पहुंचा दिया था। बहरहाल थोड़ी सी भी समझ रखने वाले व्यक्ति को इस सारी चकल्लस की सच्चाई का अंदाज़ा हो जाएगा। सीडी पर सीडी और स्टिंग पर स्टिंग और सबमें संजीव सक्सेना मुख्य अभिनेता, फिर भी संजीव सक्सेना गायब है। यानी उसका अमर सिंह से कितना गहरा रिश्ता है इसे समझना मुश्किल नहीं है।
बहरहाल अपना मकसद दूसरा है। सीडी पर सीडी जारी करने इस खेल में कहीं ये पार्टियां अपनी शातिर चालों से इतने संगीन मामले को हल्का करने की कोशिश तो नहीं कर रहीं हैं। जिस तरह के तथ्य अरुण जेटली ने पेश किए थे उसका कोई जवाब दिए बेगैर सीडी का एक नया शो दिखाकर सारे मीडिया को चाय-नाश्ता कराने का मंसूबा क्या हो सकता है? आखिर अमर सिंह अपने साथ लालू जैसे नेताओं को लाकर क्या दिखाना चाहते थे कि हमारे पास सत्ता, ताकत और सहयोग सब है इसलिए हमसे ना टकराना। ये बात जानते हुए भी कि संपादित सीडी या विजुअल किसी तरह का सबूत नहीं बन सकते ये नौटंकी करने का क्या मकसद हो सकता है? जिस खिलंदड़ अंदाज़ में लालू यादव तीनों सांसदों का नार्को टेस्ट करवाने की बात कर रहे थे वही लालू संजीव सक्सेना का नार्को टेस्ट करवाने की बात क्यों नहीं करते, आखिर वो देश के प्रतिष्ठित राजनेता और जो कलंक संसद के माथे पर लगा है उसे साफ करने की जिम्मेदारी उनकी भी बनती है। और इस सबसे ऊपर अगर आपके पास संजीव सक्सेना का स्टिंग करने के लिए उसका निवास-पता मालूम है तो फिर इतने बड़े शर्म को सामने लाने के लिए उसे सामने लाने की बात क्यों नहीं की लालूजी ने। पर शायद सबने मिलकर इसे हल्के में उड़ाने का मंसूबा बना लिया है।
पत्रकारों ने जब जेटली के प्रमाणों के आधार पर अमर सिंह से जवाब मांगे तो उनकी लरजती जुबान-अटकती हिंदी ये चुगली कर रही थी कि कर्कश वाणी के फर्राटेदार महारथी बोलने से पहले मुसीबतों के सागर में गोते लगा रहे थे। तीन बार में उन्होंने संजीव सक्सेना अपने यहां से निकालने की तीन तारिखें बताई। पहले उन्होंन कहा कि उसे 19 जुलाई को काम से हटा दिया गया। फिर कहा कि 20 की शाम को वो आफिस आया था। फिर बताया कि 21 को उसने मिलने की कोशिश की थी। और उसे निकले जाने की वजह बता पाने में एक बार फिर उनकी जुबान दगा दे गई। अंतत: जब कुछ समझ नहीं आया तो अपने ऑफिस के एक कर्मचारी के ऊपर सारी जवाबदेही डालकर वहां निकलने में अपनी भलाई समझी। गौरतलब है कि इसी तीन दिन के बीच संजीव सक्सेना ने अमर सिंह के उस बहुप्रचारित प्रेस कान्फ्रेंस के एसएमएस तमाम पत्रकारों को भेजे थे जिसमें उन्होंने बड़े गर्व से एक सांसद का दलबदल करवाया था।
अच्छा तो ये होता कि जितना बढ़ चढ़कर अरुण जेटली दावा कर रहे थे उसके बाद सीएनएन-आईबीएन टेप को प्रसारित करता। आखिर उसी का हवाला तो वो दे रहे हैं। तो ये भी साफ हो जाता कि अरुण और भाजपा कितने दूध के धुले हैं। दूसरी ओर हर दिन एक नया स्टिंग दिखाकर सत्ताधारी कुनबे ने तो अपनी विश्वसनीयता खो ही दी है। तो उम्मीद मीडिया से ही की जा सकती है। पर ऐसा भी नहीं हो रहा है। उधर नेता एक दूसरे की लंगोट खींचने में मशगूल हैं।
अतुल चौरसिया
ये राजनीति है भईया और अमर सिंह और ये सभी नेता हमारे देश के लिए शर्म का एक हिस्सा ।
grt effort atul sir….i am totally overhelmed with the articles and effort.many congratulations..will come to chauraha very soon…
क्या कहें यहाँ सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं!