हिंदी वाले क्या कम ठरकी हैं?

mast1.gifबीते दिनों एक मित्र से अपन ने कहा कि मेरा भी एक ब्लॉग है मौका लगे तो पढ़ना। छूटते ही उन्होंने कहा अच्छा बेटा तुम्हें की-बोर्ड घसीटी की चस्का लग गया। अपने ही पेशे से ताल्लुक रखते हैं, थोड़ा उमर में भी बड़े हैं। वो जारी थे। आगे बोले- हमें फालतू लिखने का ज्यादा मौका तो है नहीं लेकिन पढ़ने का थोड़ा बहुत समय जरूर निकाल लेता हूं। मैं निर्विकार भाव में उनकी ओर निहार रहा था। वो जारी थे। बातों ही बातों में एक गजब राज खोल दिया। बोले पता है सबसे ज्यादा मस्तराम का ब्लॉग पढ़ा जाता है। अपन सिटपिटा गए- ये क्या कह रहे हो यार। उन्होंने सवाल करने शुरू कर दिए, दुनिया में इंटरनेट पर सबसे ज्यादा क्या खोजा जाता है। अपन सीना तान कर अपना जनरल नॉलेज बघार गए- सेक्स। उन्होंने पूछा इंटरनेट पर सबसे ज्यादा क्या देखा जाता है, अपन ने जवाब दिया- पर्न वीडियो। उन्होंने कहा तो तुम्हें क्या लगता है कि मस्तराम पीछे रहेगा? मस्तराम अपडेट नही होगा नई टेक्नोलॉजी से। हिंदी पढ़ने वाले क्या कम ठरकी हैं? अपनी समझ में नहीं आ रहा था। ये क्या पंगा ले लिया। अपना ब्लॉग पढ़ने के लिए कहा था ये तो पीछे ही पड़ गए।
बहरहाल वो जारी थे। बोले कितने लोग पढ़ लेते हैं तुम्हारे ब्लॉग? मैंने कहा ज्यादा तो नहीं ठीक ठाक लोग पढ़ लेते हैं। उन्होंने फिर पूछा कितने कमेंट आ जाते हैं तुम्हारे ब्लॉग्स पर? मेरी कुछ समझ में नहीं आया कहा आ जाते दो चार। ऐसे भी अपन कौन से बहुत नामी लिक्खाड़ हैं। उन्होंने कहा एक बार मस्तराम का ब्लॉग खोलना पता चल जाएगा कितने लोग पढ़ते हैं। कमेंट पढ़ने का सिलसिला शुरू होने के बाद खत्म ही नहीं होता। जाने कितने लोगों के संस्मरण मस्तराम ब्लॉग के कमेंट के सहारे सामने आ जाते है। जाने कितनी दबी छुपी इच्छाएं प्रकट हो जाती हैं। एक मस्तराम कहानी का आधा भी अगर तुम्हारे ब्लॉग को कमेंट मिल जाएं तो सफल मान लेना। भेज दूंगा लिंक मस्तराम के, देख लेना, पढ़ लेना।
अपनी खोपड़ी चकरा गई थी। ये क्या हैं। दोस्ती यारी में पढ़ने को क्या कह दिया इज्जत लेने पर उतारू हो गए। उमर में बड़े हैं लिहाज है सम्मान पर वो तो सारी सीमा ही तोड़ने पर उतारू हो गए। पर एक बात मालुम थी कि उनकी कड़वी बात होती सच है। कहीं न कहीं मन में था कि देखें क्या है मस्तराम ब्लॉग। लेकिन अपनी खिंचाई को ज़ाहिर न होने देने की गरज से उसके प्रति ज्यादा उत्सुकता भी नहीं दिखा सकते थे। पर मन अंदर ही अंदर बेचैन था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान मस्तराम की किताब के तमाम किस्से दोस्तों के बीच प्रेमचंद, शेक्सपियर, शुक्लजी, द्विवेदीजी, गोर्की के पाठ्यक्रम की कहानियों से ज्यादा लोकप्रिय थे। पर ये नहीं पता था कि ब्लॉगजगत में भी इसकी इतनी धूम है। भला हो ब्लॉगवाणी, नारद जैसों का जिन्होंने उन्हें अपने मुख्य पन्ने पर जगह नहीं दी वरना जाने क्या लंपटता मचती। मन में यही चल रहा था कि जल्द से जल्द लिंक भेजें तो देखा जाय है क्या। या इनसे पिंड छूटे तो लिंक का इंतज़ार कौन करता है। गूगल कर लेंगे। होगा तो मिल ही जाएगा।
बहरहाल मस्तराम मिला ही नहीं भैया। इतनी धूम से मिला कि ऊपरी माले के नट बोल्ट ढीले टाइट सब हो गए। पर्नसाइट का तो पता था लेकिन ब्लॉग में इतनी लोकप्रियता वो भी बिना किसी एग्रीगेटर की मदद के। समझ में नहीं आ रहा है कि सामान्य ब्लॉग पढ़ने से ज्यादा ब्लॉग पर कुंठित, झूठी, अकल्पनीय कहानियां पढ़ने वालों की पहुंच है। इस पर लंटता, फूहड़ता परोसने वालों की पहुंच है। इस पर कमेंट देने के लिए लाइन लगाने वालों का तांता है। सबको आज़ादी है पर आज़ादी का ऐसा दुरुपयोग। क्या हिंदी वाले इतने गए गुजरे हैं या फिर इंटरनेट की पहुंच कायदे की बजाय बेकायदे के लोगों तक हो गई है। पहले रोना था कि इंटरनेट की पहुंच हिंदीवालों तक नहीं है या जाने हिंदी की पहुंच इंटरनेट पर नहीं है, जाने क्या घालमेल था। और अब है तो इसका ये निराला रंग है। मस्तराम के ब्लॉग पर मिलने वाले कमेंट पाठकों का स्टैटिस्टिक रिकॉर्ड अपन को तो शर्मिंदा कर गया। लेकिन क्या है कि पत्रकार होता ही है मोटी चमड़ी का बेशर्म जीव। तो अपन तो फिर भी लगे ही रहेंगे। आपको विश्वास नहीं हो रहा है तो नीचे लिंक दिए हैं आप भी उनके आंकड़े देख लीजिए।


http://mustram-musafir.blogspot.com/
 

अतुल चौरसिया

5 टिप्पणियां

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5 responses to “हिंदी वाले क्या कम ठरकी हैं?

  1. मैं ऐसी भाषा लिखने का आदी नहीं हूं फिर भी आज नहीं रहा गया..
    आपके वो सम्मानित मित्र भी उसी कैटेगरी में से ही लगते हैं तभी तो अच्छे ब्लौग का ज्ञान नहीं होते हुये भी मस्तराम के ब्लौग का ज्ञान है उन्हें..

  2. वयस्कोन्मुख सामग्री – यदि और भी मिले तो यहाँ प्रस्तावित कर दें।

  3. प्रिय प्रशांत भाई, अब मित्र तो मित्र ही हैं। क्या कह सकते हैं। हर तरह के मित्र होते हैं। आप भी मेरे अंतर्जाल मित्र ही हैं। पहले भी आपकी मूल्यवान टिप्पणियां आती रही हैं। आप ने शायद मन पर बात ले ली। लेकिन ये उनका काम है। दिन भर ख़बरों की तलाश में नेट की खाक छानते रहते हैं लिहाजा अच्छी-बुरी हर चीज़ से पाला पड़ता रहता है। उन्होंने तो जानकारी ही दी थी। जैसे कभी आपने अपने ब्लॉग के माध्यम से मस्त मस्त माल के एडमिशन और हॉस्टल की मस्त पर्न मूवी भरी रातों की जानकारी दी थी। जानकारियां चारो तरफ से आनी चाहिए। दिल और दिमाग का दरवाजा इस मामले में हमेशा खुला होना चाहिए। पर सबकी सोच है, स्वतंत्र विचार हैं। मेरे ख्याल से हर व्यक्ति अपनी सोच में सही ही होता है। सबका अपना नज़रिया है। इसलिए गुस्से की कोई बात नहीं है। आप ने अपनी परंपरा के विपरीत भाषा लिखी इसका मुझे कतई बुरा नहीं लगा। बुरा सिर्फ यही लगा की मेरी वजह से आपको अपनी शैली के विपरीत लिखना पड़ा। क्षमा!

  4. बन्धुवर
    खा गए गच्चा. हमारे ब्लोग का पता हटाओ हम वह मस्तराम नहीं है जिनका आपने जिक्र किया है. हमने ब्लोग के सतत कावुन्तर पर आपके ब्लोग को देखा तो खुश हो गए कि हमें कोई नोटिस ले रहा है, आपने तो हमारा ब्लोग नहीं पढा और लोग आपके यहाँ से हमारा ब्लोग पढ़कर हंस रहे होंगे क्योंकि आपके विषय से अलग हैं हमारी रचनाएं. हम मस्तराम ‘आवारा” हैं. आपका ब्लोग ढूँढने में बहुत परेशानी हुई. और हाँ वर्डप्रेस के ब्लोग पर पोस्ट स्लग में भी अंग्रेजी में शीर्षक लिखा करो ताकि इसे हम स्टेट काऊंटर पर पढ़ सकें, हमारा एक फ्लॉप ब्लोग वहाँ भी है उस पर भी कभी लिखेंगे.आप हमारे मित्र हैं तो बाद में किसी अच्छे प्रसंग में नाम दीजिये.

    आपक शुभेच्छु
    मस्तराम ‘आवारा”
    doosraa blog http://mastram-zee.blogspot.com

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